सच्चाई से परे शहर की लड़की
रोज़ाना पढ़ती हूँ तुम्हारे साथ हो रहे अन्याय अख़बारों और मैगज़ीनों में।
रोज़ सुनती हूँ तुम्हारे साथ हो रही नाइंसाफ़ी खबरों और social media पे।
ग़ुस्सा ज़रूर आता हैं। दुःख भी बहुत होता हैं।
पर मेरे रौंगटे खड़े नहीं होते, तुम्हारी इस पीड़ा पे।
लेकिन जब यही हुआ था निर्भया के साथ दिल्ली की सड़कों पे,
एक अलग सा आक्रोश उभरा था मेरे मन में।
तुम दोनों के साथ जो अपराध हुआ , वह एक बराबर है ।
जो अमानवीय व्यवहार किया गया, वह एक समान है ।
फिर क्यों है ये फ़र्क मेरी सोच में?
एक का दर्द ज़्यादा और एक का कम क्यों है मेरी नज़रों में?
दिल्ली में जो हुआ वह मेरे साथ भी हो सकता था।
जीन्स या स्कर्ट पहन के पिक्चर देखने मैं भी तो जाती हूँ।
रात को लेट बस, ट्रेन या uber, मैं भी लेती हूँ।
अकेले लड़के के साथ late night, मैं भी तो घूमती हूँ।
पर मैं खेत खलियानों में पसीना नहीं बहाती,।
मज़दूरी करके अपने परिवार का पेट नहीं भरती।
ठाकुरों और ब्राह्मणों के जुल्म मैंने नहीं झेले हैं।
ज़िंदगी में अन्याय और अत्याचार मैंने नहीं सहे हैं।
जाति के भेदभाव से परे है मेरी दुनिया,
आज जाना, कुए के मेंढक सा हैं मेरा नज़रिया।
ना तुमसी कोई सहेली है, ना कोई मित्र,
गौर से सोचूँ , तो ये बात है विचित्र।
समानता और इंसाफ़ की बातें हूँ मैं करती,
पर तुम्हारे न्याय के लिए सड़कों पर नहीं उतरती।
समाज में क्या मेरा औदा तुमसे ऊँचा हैं?
क्या खुद की नज़रों में, मेरे जीवन का ज़्यादा मोल हैं?
अब तक मानती थी खुद को पढ़ी लिखी, मॉडर्न, शहर की लड़की।
अपनी छोटी सोच पे है अब मुझे शर्म और घृणा आती।
Heart breaks!!!
ReplyDeleteDisheartening but unfortunately, ttue
ReplyDeleteOh man.. no words Aditi..
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